याद एहसान उनको

याद एहसान उनको न मेरे रहे,
फिर भी शिकवा ना कोई गीला किया,

घर जला कर ज़माने को दी रोशनी,
वक़्त मुझ पर पड़ा तो मिला ना दिया,

भूल कर गये थे परेशन कभी,
अब उसी की तुम्हे मिल रही है यह सज़ा.

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